
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: E20 नीति को चुनौती देने वाली याचिका रद्द
नई दिल्ली, 2 सितंबर 2025: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इथेनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम (E20) नीति को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया। इस नीति में 20% इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की बिक्री अनिवार्य है। याचिका में पुराने वाहनों के लिए इथेनॉल-मुक्त पेट्रोल (E0) उपलब्ध कराने की मांग की गई थी। चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने सुनवाई के बाद याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि अप्रैल 2023 से पहले बने वाहन E20 के लिए उपयुक्त नहीं हैं, जिससे इंजन में खराबी और मरम्मत लागत बढ़ रही है।
याचिकाकर्ता का तर्क: पुराने वाहनों पर E20 का असर
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील शादान फरासत ने 2021 की नीति आयोग की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें पुराने वाहनों पर E20 के नकारात्मक प्रभाव की चिंता जताई गई थी। उन्होंने कहा कि अप्रैल 2023 से पहले बने वाहन और कुछ बीएस-VI वाहन E20 के अनुकूल नहीं हैं। E20 के इस्तेमाल से ईंधन दक्षता में 6% की कमी, इंजन में जंग, और समय से पहले टूट-फूट की समस्या हो रही है। याचिका में मांग की गई थी कि E0 पेट्रोल की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए, पंपों पर उचित लेबलिंग हो, और उपभोक्ताओं को वाहन अनुकूलता की जानकारी दी जाए। फरासत ने कहा कि अमेरिका और यूरोपीय संघ में E0 उपलब्ध है, लेकिन भारत में नहीं।
केंद्र का जवाब: नीति किसानों के हित में
भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह नीति गन्ना किसानों के हित में है और इसे सभी पहलुओं पर विचार के बाद बनाया गया है। उन्होंने याचिकाकर्ता को ‘नाममात्र का’ बताते हुए दावा किया कि इसके पीछे कोई बड़ा लॉबी काम कर रहा है। वेंकटरमणी ने सवाल उठाया, “क्या विदेशी लोग तय करेंगे कि भारत को किस तरह का ईंधन इस्तेमाल करना चाहिए?” उन्होंने कहा कि E20 नीति पर्यावरण और आर्थिक लाभ के लिए बनाई गई है, और उपभोक्ताओं को कोई नुकसान नहीं हो रहा। चीफ जस्टिस ने सुनवाई के बाद बिना विस्तृत टिप्पणी के याचिका खारिज कर दी।
याचिका का आधार: उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन
याचिका में दावा किया गया था कि E20 नीति पुराने वाहन मालिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, क्योंकि उनके पास E0 पेट्रोल का विकल्प नहीं है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत सूचित पसंद के अधिकार का हवाला देते हुए कहा गया कि पंपों पर लेबलिंग की कमी से उपभोक्ता भ्रमित हैं। याचिका में आरोप लगाया गया कि इथेनॉल सस्ता होने के बावजूद उपभोक्ताओं को कीमत में राहत नहीं दी जा रही। बीमा कंपनियां E20 से हुए नुकसान के दावे खारिज कर रही हैं। याचिका में E20 के प्रभाव पर राष्ट्रीय अध्ययन की मांग भी की गई थी, लेकिन कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया।
पर्यावरण बनाम पुराने वाहनों की चिंता
E20 नीति का उद्देश्य पेट्रोल आयात कम करना और पर्यावरण को लाभ पहुंचाना है, लेकिन पुराने वाहनों की अनुकूलता पर सवाल बने हुए हैं। ऑटोमोटिव विशेषज्ञों का कहना है कि E20 से पुराने इंजनों में जंग और रबर सील्स को नुकसान हो सकता है। भारत में करीब 60% वाहन पुराने हैं, जो E20 के लिए पूरी तरह तैयार नहीं। यह फैसला पर्यावरण नीतियों और उपभोक्ता हितों के बीच संतुलन की चुनौती को उजागर करता है। सोशल मीडिया पर #E20Petrol ट्रेंड कर रहा है, जहां लोग नीति पर बहस कर रहे हैं।
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