छत्तीसगढ़ में ननों की गिरफ्तारी: मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण के आरोप, राजनीतिक विवाद गहराया

नई दिल्ली, 2 अगस्त 2025: छत्तीसगढ़ के दुर्ग रेलवे स्टेशन पर 25 जुलाई 2025 को दो कैथोलिक ननों, सिस्टर प्रीति मेरी और सिस्टर वंदना फ्रांसिस, साथ ही नारायणपुर के सुकमन मंडावी की गिरफ्तारी ने देशभर में हंगामा मचा दिया है। इन पर मानव तस्करी और जबरन धर्मांतरण के आरोप लगे हैं। यह मामला अब राजनीतिक और सामाजिक विवाद का केंद्र बन गया है, जिसमें विपक्षी दलों ने इसे अल्पसंख्यकों पर हमला करार दिया है, जबकि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा है कि “कानून अपना काम कर रहा है।”

घटना का विवरण

पुलिस के अनुसार, दोनों ननें और सुकमन मंडावी तीन युवतियों (18-19 वर्ष) को नारायणपुर जिले से आगरा ले जा रहे थे। स्थानीय बजरंग दल के कार्यकर्ता रवि निगम की शिकायत पर इन्हें दुर्ग रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार किया गया। शिकायत में आरोप लगाया गया कि ननें इन युवतियों को नौकरी का लालच देकर जबरन धर्मांतरण और मानव तस्करी के लिए ले जा रही थीं। गिरफ्तारी के बाद, तीनों आरोपियों को 8 अगस्त तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया, और युवतियों को भिलाई के सखी सेंटर में संरक्षण के लिए भेजा गया।

कानूनी कार्रवाई

आरोपियों पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 143 (मानव तस्करी) और छत्तीसगढ़ धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 की धारा 4 (जबरन धर्मांतरण) के तहत मामला दर्ज किया गया है। दुर्ग के सत्र न्यायालय ने 30 जुलाई को जमानत याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि यह मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के अधिकार क्षेत्र में आता है। ननों को अब बिलासपुर की NIA अदालत में जमानत के लिए आवेदन करना होगा, जिसका फैसला 2 अगस्त को संभावित है।

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परिवार और चर्च का दावा

युवतियों के परिवार वालों ने पुलिस को बताया कि उनकी बेटियां अपनी मर्जी से और माता-पिता की सहमति से आगरा जा रही थीं, जहां उन्हें फातिमा अस्पताल में नौकरी मिलनी थी। परिवारों ने जबरन धर्मांतरण या तस्करी के आरोपों को खारिज किया। रायपुर डायोसिस और कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (CBCI) ने भी कहा कि युवतियां पहले से ही ईसाई थीं, और इसलिए धर्मांतरण का सवाल ही नहीं उठता। CBCI के अध्यक्ष आर्चबिशप एंड्रयूज थझाथ ने इसे “राष्ट्रीय शर्म” करार दिया और कहा कि यह अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों पर हमला है।

बजरंग दल की भूमिका

बजरंग दल के कार्यकर्ताओं पर आरोप है कि उन्होंने स्टेशन पर ननों और युवतियों को धमकाया और एक युवती को बयान बदलने के लिए मजबूर किया। एक वीडियो में बजरंग दल की कार्यकर्ता ज्योति शर्मा को ननों और युवतियों के साथ बदसलूकी करते देखा गया। ईसाई संगठनों ने दावा किया कि पुलिस ने बजरंग दल के दबाव में गिरफ्तारी की और कोई प्रारंभिक जांच नहीं की।

राजनीतिक हंगामा

इस घटना ने छत्तीसगढ़, केरल और दिल्ली में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। केरल में सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) और विपक्षी यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) के सांसदों ने संसद के बाहर अलग-अलग विरोध प्रदर्शन किए। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने इसे “अल्पसंख्यकों पर हमला” बताया, जबकि राहुल गांधी ने इसे “BJP-RSS की भीड़तंत्र” करार दिया। CPI(M) की बृंदा करात ने ननों से जेल में मुलाकात की और गिरफ्तारी को “असंवैधानिक” कहा।

केरल बीजेपी अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने बजरंग दल से दूरी बनाते हुए कहा कि ननों की गिरफ्तारी “गलतफहमी” का नतीजा है और वे जल्द रिहा हो जाएंगी। उन्होंने बजरंग दल की हरकतों की निंदा की और कहा कि कानून तोड़ने वालों को सजा मिलनी चाहिए।

सामाजिक और धार्मिक तनाव

यह मामला छत्तीसगढ़ में आदिवासी और ईसाई समुदायों के बीच तनाव को उजागर करता है। 2011 की जनगणना के अनुसार, छत्तीसगढ़ में ईसाई आबादी लगभग 2% है। कुछ हिंदू संगठन, जैसे विश्व हिंदू परिषद (VHP), आदिवासियों को “हिंदू जड़ों” की ओर लौटने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, जबकि आदिवासी संगठन अलग “सारना धार्मिक कोड” की मांग कर रहे हैं। VHP के सुरेंद्र जैन ने केंद्र सरकार से धर्मांतरण पर राष्ट्रीय कानून लाने की मांग की है।

यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (UCF) के अनुसार, भारत में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं 2014 में 127 से बढ़कर 2024 में 834 हो गई हैं, जो अल्पसंख्यकों पर बढ़ते दबाव को दर्शाता है।

ननों की स्थिति

ननें और सुकमन मंडावी वर्तमान में दुर्ग सेंट्रल जेल में हैं। चर्च नेताओं का कहना है कि ननों को जेल में अच्छा व्यवहार मिल रहा है, लेकिन वे डरी हुई हैं। कई मिशनरी संगठनों ने ननों को सार्वजनिक रूप से धार्मिक पोशाक न पहनने की सलाह दी है ताकि आगे की परेशानी से बचा जा सके।

निष्कर्ष

यह मामला भारत में धार्मिक स्वतंत्रता, अल्पसंख्यक अधिकारों और anti-conversion laws के दुरुपयोग पर गंभीर सवाल उठाता है। जहां छत्तीसगढ़ सरकार इसे महिलाओं की सुरक्षा से जोड़ रही है, वहीं विपक्ष और ईसाई संगठन इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ सुनियोजित हमला मानते हैं। बिलासपुर की NIA अदालत का फैसला इस मामले की दिशा तय करेगा।

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