
आगरा, 28 जुलाई 2025: उत्तर प्रदेश के आगरा में एक संगठित धर्मांतरण गिरोह का पर्दाफाश हुआ है, जिसने आर्थिक तंगी और मजबूरी का फायदा उठाकर मासूम युवतियों और युवकों को अपने जाल में फंसाया। इस गिरोह ने नौकरी, पढ़ाई और आर्थिक मदद का लालच देकर कई जिंदगियों को बर्बाद कर दिया। पुलिस ने इस मामले में 14 लोगों को गिरफ्तार किया है और जांच में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। यह मामला समाज में गहरी चिंता का विषय बन गया है, जो मानवता को शर्मसार करता है।

कैसे शुरू हुआ यह घिनौना खेल?
पुलिस आयुक्त दीपक कुमार के नेतृत्व में यूपी पुलिस और एटीएस ने ‘मिशन अस्मिता’ के तहत इस अवैध धर्मांतरण रैकेट को ध्वस्त किया। जांच में पता चला कि यह गिरोह 16 से 25 साल की उम्र के उन युवक-युवतियों को निशाना बनाता था, जो आर्थिक तंगी, पारिवारिक समस्याओं या नौकरी की तलाश में थे। ये लोग फेसबुक, गेमिंग ऐप्स और व्हाट्सएप ग्रुप्स के जरिए शिकार को अपने जाल में फंसाते थे। मदद का वादा कर पहले भरोसा जीता जाता, फिर धीरे-धीरे उन्हें हिंदू धर्म के खिलाफ भड़काया जाता और धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डाला जाता।

एक बेटी की दर्दनाक कहानी
पुलिस ने सात युवतियों को इस गिरोह से मुक्त कराया, जिनमें से एक ने अपनी आपबीती सुनाई, जो दिल दहला देने वाली है। आगरा की रहने वाली 20 साल की सृष्टि (बदला हुआ नाम) पढ़ाई के लिए घर से बाहर गई थी। उसने कॉलेज में दाखिला तो ले लिया, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण पिता उसका खर्च नहीं उठा पाए। दो बीघा जमीन के सहारे चलने वाले परिवार के लिए बेटी की पढ़ाई का बोझ असहनीय था। एक महीने बाद पिता ने पैसे भेजना बंद कर दिया। तभी सृष्टि की मुलाकात गिरोह के एक सदस्य से हुई, जिसने उसे आर्थिक मदद का लालच दिया। धीरे-धीरे उसे इस्लाम अपनाने के लिए उकसाया गया और वह जाल में फंस गई। सृष्टि ने बताया कि उसे तीसरी या चौथी पत्नी बनने के लिए भी दबाव डाला गया।
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गिरोह का खौफनाक तरीका
पुलिस के मुताबिक, इस गिरोह में छह लोग ऐसे थे, जिन्होंने पहले खुद धर्म परिवर्तन किया और फिर दूसरों को फंसाने का काम शुरू किया। ये लोग कम उम्र के बच्चों को निशाना बनाते थे। 16 साल की उम्र में फंसाए गए बच्चों को 18 साल का होने तक इंतजार करवाया जाता, ताकि वे कानूनी रूप से घर छोड़ सकें। परिजनों को इसकी भनक तक नहीं लगने दी जाती। गिरोह के सदस्य व्हाट्सएप ग्रुप्स में इस्लाम का प्रचार करते और कश्मीर जैसे स्थानों पर ले जाकर कट्टरपंथी विचारों का प्रचार करते। मजदूर और सफाई कर्मचारी जैसे लोग पैसे के लालच में आसानी से उनके जाल में फंस जाते।
विदेशी फंडिंग और आतंकी कनेक्शन
जांच में यह भी सामने आया कि इस गिरोह को कनाडा, अमेरिका, दुबई और यहां तक कि फलस्तीन से भी फंडिंग मिल रही थी। पुलिस ने बताया कि यह नेटवर्क छह राज्यों में फैला हुआ था और इसके तार आतंकी संगठन आईएसआईएस से प्रेरित मॉड्यूल से जुड़े थे। गिरोह का कोडवर्ड ‘रिवर्ट’ था, जिसका मतलब ‘घर वापसी’ बताया जाता है। इस कोडवर्ड के जरिए वे अपनी गतिविधियों को छिपाते थे। गिरफ्तार 14 आरोपियों में से कुछ ने स्वीकार किया कि उनका मकसद 2050 तक देश भर में लोगों को इस्लाम से जोड़ना था।
समाज में आक्रोश
इस मामले ने समाज में गहरी नाराजगी पैदा की है। लोग इसे ‘लव जिहाद’ और संगठित अपराध का हिस्सा मान रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग इस गिरोह की क्रूरता की निंदा कर रहे हैं और सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाया है और कहा है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।
आगे की जांच
पुलिस और एटीएस अब इस नेटवर्क के अन्य सदस्यों की तलाश में छापेमारी कर रही है। सीसीटीवी फुटेज, बैंक खातों और फोन रिकॉर्ड्स की जांच से और खुलासे होने की उम्मीद है। यह मामला समाज को यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि आर्थिक और सामाजिक कमजोरियों का फायदा उठाकर कितने लोग इस तरह के जाल में फंस रहे हैं।
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