
महिला ने नाबालिग को उकसाया, कोर्ट ने कहा- यह पेनेट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट
बेंगलुरु, 19 अगस्त 2025: कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अगर कोई महिला नाबालिग लड़के को उकसाकर या जोड़-तोड़ से सेक्शुअल एक्ट में शामिल करती है, तो यह POCSO एक्ट की धारा 3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट माना जाएगा। 52 साल की महिला पर 14 साल के लड़के से सेक्शुअल असॉल्ट का आरोप है। कोर्ट ने FIR रद्द करने की याचिका खारिज कर दी और कहा कि ट्रायल जरूरी है। यह फैसला लड़कों को सेक्शुअल असॉल्ट से बचाने के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।
केस का बैकग्राउंड और आरोप
मामला 2024 का है, जहां महिला पर धारा 4 (पेनेट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट की सजा) और 6 (गंभीर पेनेट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट की सजा) के तहत केस दर्ज हुआ। महिला के वकील ने दलील दी कि धारा 3 में ‘ही’ (he) का इस्तेमाल है, जो पुरुष को संकेत करता है, इसलिए महिला आरोपी नहीं हो सकती। लेकिन जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा कि धारा 3 में ‘एक व्यक्ति’ (a person) का मतलब जेंडर न्यूट्रल है। कोर्ट ने कहा, “यह धारा आग पर चलने जैसी पुरानी सोच को खारिज करती है, जहां पुरुष सक्रिय और महिला निष्क्रिय मानी जाती है।”
धारा 3 की व्याख्या
कोर्ट ने POCSO की धारा 3 का विश्लेषण किया, जो कहती है कि अगर कोई व्यक्ति नाबालिग के साथ या उसे उकसाकर पेनेट्रेशन करे, तो यह अपराध है। कोर्ट ने कहा, “महिला का नाबालिग को जोड़-तोड़ से उकसाना धारा 3 (c) के तहत आता है, जहां ‘मेक द चाइल्ड टू डू सो’ का मतलब है बच्चे को किसी भी तरीके से मजबूर करना।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि शॉक में इरेक्शन नहीं होने की दलील गलत है, क्योंकि शॉक मनोवैज्ञानिक है, जबकि इरेक्शन शारीरिक। टेक्सास यूनिवर्सिटी के एक आर्टिकल का हवाला देकर कोर्ट ने कहा कि डर में भी बॉडी रिएक्ट कर सकती है।
महिला आरोपी बन सकती है, जेंडर न्यूट्रल कानून
कोर्ट ने महिला के वकील की दलील को खारिज करते हुए कहा कि POCSO एक्ट जेंडर न्यूट्रल है। धारा 5 में ‘किसी अन्य व्यक्ति’ का मतलब है कि अपराधी कोई भी हो सकता है। कोर्ट ने कहा, “यह एक्ट लड़कियों और लड़कों दोनों की रक्षा करता है। पुरुषों पर सेक्शुअल असॉल्ट के केस भी बढ़ रहे हैं।” कोर्ट ने ट्रायल की जरूरत पर जोर दिया और कहा कि FIR रद्द नहीं की जा सकती, क्योंकि तथ्य विवादित हैं।
सामाजिक प्रभाव और प्रतिक्रियाएं
यह फैसला नाबालिग लड़कों को सेक्शुअल असॉल्ट से बचाने के लिए बड़ा कदम है। सोशल मीडिया पर #POCSOJustice ट्रेंड कर रहा है। @LawUpdatesIN ने X पर लिखा, “कर्नाटक HC ने जेंडर स्टीरियोटाइप्स तोड़े, अब कानून सबके लिए बराबर।” फैंस ने कहा कि यह फैसला समाज में बदलाव लाएगा। क्या यह अन्य राज्यों में भी असर डालेगा? विशेषज्ञों का कहना है कि हां, क्योंकि POCSO राष्ट्रीय कानून है।
आगे की राह
महिला की याचिका खारिज होने से ट्रायल होगा। कोर्ट ने कहा, “ट्रायल रस्मी नहीं, जरूरी है। आरोपी को निर्दोष साबित होने का मौका मिलेगा।” यह केस POCSO के तहत जेंडर न्यूट्रल व्याख्या का उदाहरण बनेगा। समाज में जागरूकता बढ़ेगी।
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