
कोलकाता, 25 जुलाई 2025: पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी वी आनंद बोस ने अपराजिता महिला एवं बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून संशोधन) विधेयक को केंद्र सरकार की आपत्तियों के आधार पर ममता बनर्जी सरकार को वापस भेज दिया है। केंद्र ने विधेयक में बलात्कार के लिए प्रस्तावित सजा को “अत्यधिक कठोर और असंगत” करार दिया है। यह विधेयक सितंबर 2024 में पश्चिम बंगाल विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित हुआ था, जिसका उद्देश्य महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के लिए कठोर सजा सुनिश्चित करना था।
केंद्र की आपत्तियां और विधेयक के प्रावधान
केंद्र सरकार ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 64 में प्रस्तावित संशोधन को अत्यधिक कठोर बताया, जिसमें बलात्कार की सजा को न्यूनतम 10 वर्ष से बढ़ाकर आजीवन कारावास या मृत्युदंड करने का प्रावधान है। इसके अलावा, धारा 65 को हटाने का प्रस्ताव, जो 16 और 12 वर्ष से कम आयु की लड़कियों के साथ बलात्कार के लिए विशेष सजा का प्रावधान करता है, को भी अनुपातहीन माना गया। सबसे ज्यादा विवाद धारा 66 के तहत मृत्युदंड को अनिवार्य करने वाले प्रावधान को लेकर है, जिसमें पीड़िता की मृत्यु या लगातार वानस्पतिक अवस्था (vegetative state) में रहने की स्थिति में यह सजा लागू होगी। गृह मंत्रालय ने इसे संवैधानिक रूप से गलत बताते हुए कहा कि इससे न्यायिक विवेक का उल्लंघन होता है।
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ममता सरकार का रुख
पश्चिम बंगाल सरकार ने दावा किया है कि उसे अभी तक केंद्र या राज्यपाल कार्यालय से विधेयक को लेकर कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली है। एक वरिष्ठ नौकरशाह ने कहा, “हमें अपराजिता विधेयक के संबंध में कोई संवाद नहीं हुआ है। यदि सूचना मिलती है, तो हम उचित कदम उठाएंगे।” तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष ने केंद्र के रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि केंद्र ने मृत्युदंड को अत्यधिक क्रूर माना है, तो यह महिलाओं की सुरक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाता है।
विधेयक का पृष्ठभूमि
अपराजिता विधेयक को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में 9 अगस्त 2024 को एक प्रशिक्षु डॉक्टर के कथित बलात्कार और हत्या के बाद लाया गया था। इस घटना ने पूरे देश में आक्रोश पैदा किया था, जिसके बाद ममता बनर्जी सरकार ने इस विधेयक को महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक मजबूत कदम के रूप में पेश किया। विधेयक में बलात्कार की जांच 21 दिनों में पूरी करने, विशेष टास्क फोर्स गठन, और पीड़ितों की पहचान गोपनीय रखने जैसे प्रावधान शामिल हैं।
राजनीतिक विवाद
यह विधेयक ममता बनर्जी के लिए 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक मजबूत संदेश देने का प्रयास था। हालांकि, केंद्र और राज्यपाल के इस कदम ने इसे विवादों में ला दिया। तृणमूल कांग्रेस ने आरोप लगाया कि केंद्र और भाजपा महिलाओं की सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं हैं। दूसरी ओर, केंद्र का कहना है कि विधेयक के प्रावधान संवैधानिक मानदंडों और सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के खिलाफ हैं।
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